भारत में राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) सिर्फ एक मेडिकल प्रवेश परीक्षा नहीं है, बल्कि यह एक जुनून, एक सनक और लाखों छात्रों और उनके परिवारों के लिए एक सपना बन गई है। हर साल, 20 लाख से अधिक छात्र मेडिकल कॉलेजों की सीमित सीटों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, जो इस परीक्षा को दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक बनाता है। लेकिन इस जुनून के पीछे क्या कारण हैं और इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?
नीट के प्रति इस दीवानगी के कारण:
- डॉक्टर बनने का प्रतिष्ठित सपना: भारतीय समाज में डॉक्टर के पेशे को अत्यधिक सम्मान और प्रतिष्ठा की दृष्टि से देखा जाता है। इसे एक स्थिर, सुरक्षित और आकर्षक करियर विकल्प माना जाता है, जो सामाजिक सम्मान के साथ-साथ अच्छी आय भी सुनिश्चित करता है।
- सीमित सीटें और उच्च प्रतिस्पर्धा: भारत में मेडिकल सीटों की संख्या बहुत सीमित है। सरकारी मेडिकल कॉलेजों में कम फीस और बेहतर बुनियादी ढांचे के कारण प्रवेश पाना और भी मुश्किल हो जाता है। इस सीमित आपूर्ति और अत्यधिक मांग ने प्रतिस्पर्धा को कई गुना बढ़ा दिया है।
- सामाजिक और पारिवारिक दबाव: कई माता-पिता अपने बच्चों को डॉक्टर बनाने का सपना देखते हैं और इसके लिए उन पर भारी दबाव डालते हैं। समाज में “शर्मा जी के बेटे/बेटी” की सफलता की कहानियों ने इस दबाव को और भी बढ़ा दिया है।
- कोचिंग संस्थानों का मायाजाल: देश भर में कुकुरमुत्ते की तरह उग आए कोचिंग संस्थान इस जुनून को और हवा दे रहे हैं। विज्ञापनों और सफलता की कहानियों के माध्यम से, ये संस्थान छात्रों और अभिभावकों को यह विश्वास दिलाते हैं कि उनके बिना सफलता असंभव है। इस उद्योग का आकार अरबों रुपये का है।
- एक बेहतर जीवन की आकांक्षा: छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों के कई छात्रों के लिए, नीट परीक्षा गरीबी से बाहर निकलने और एक बेहतर जीवन जीने का एक टिकट है। एक सफल डॉक्टर बनकर वे न केवल अपनी बल्कि अपने पूरे परिवार की किस्मत बदल सकते हैं।
इस जुनून का प्रभाव:
छात्रों पर:
- अत्यधिक तनाव और चिंता: परीक्षा की कठोर तैयारी, सफलता का दबाव और असफलता का डर छात्रों में अत्यधिक तनाव, चिंता और अवसाद का कारण बन रहा है।
- मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं: कई छात्र इस दबाव को झेल नहीं पाते हैं और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार हो जाते हैं। दुर्भाग्य से, कुछ मामलों में यह आत्महत्या जैसी दुखद घटनाओं को भी जन्म देता है।
- बचपन का खो जाना: नीट की तैयारी में छात्र अक्सर अपने स्कूल के दिनों का आनंद नहीं ले पाते हैं। उनका जीवन कोचिंग कक्षाओं, किताबों और मॉक टेस्ट के इर्द-गिर्द सिमट कर रह जाता है।
समाज पर:
- कोचिंग उद्योग का बढ़ता प्रभाव: नीट के जुनून ने कोचिंग उद्योग को एक विशाल और अनियंत्रित क्षेत्र बना दिया है। ये संस्थान अक्सर अत्यधिक फीस वसूलते हैं और छात्रों के शोषण का कारण बनते हैं।
- शिक्षा का व्यावसायीकरण: इस प्रवृत्ति ने शिक्षा को एक व्यवसाय में बदल दिया है, जहां गुणवत्ता से अधिक महत्व अंकों और रैंकिंग को दिया जाता है।
- सामाजिक-आर्थिक विभाजन: महंगी कोचिंग का खर्च उठाना हर किसी के लिए संभव नहीं है। यह उन छात्रों के लिए एक बाधा बन जाता है जो प्रतिभाशाली तो हैं, लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर हैं।
निष्कर्ष में, यह कहना गलत नहीं होगा कि नीट का जुनून एक दोधारी तलवार है। एक तरफ यह छात्रों को कड़ी मेहनत करने और अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित करता है, तो दूसरी तरफ यह उन पर असहनीय दबाव भी डालता है और कई सामाजिक समस्याओं को जन्म देता है। इस स्थिति से निपटने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें मेडिकल सीटों की संख्या में वृद्धि, शिक्षा प्रणाली में सुधार और छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देना शामिल है। समाज को भी यह समझने की जरूरत है कि डॉक्टर बनना ही एकमात्र सफल करियर विकल्प नहीं है और हर बच्चे की अपनी क्षमताएं और रुचियां होती हैं।
नीट का क्रेज: डॉक्टर बनने की दीवानगी या एक अंधी दौड़?
भारत में राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) सिर्फ एक मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम नहीं, बल्कि लाखों छात्रों और उनके परिवारों के लिए एक जुनून, एक सपना और कभी-कभी एक अंतहीन दबाव का स्रोत बन चुका है। हर साल लाखों की संख्या में छात्र डॉक्टर बनने की उम्मीद में इस कठिन परीक्षा में बैठते हैं, जो इसे दुनिया की सबसे प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में से एक बनाता है। इस अभूतपूर्व क्रेज के पीछे कई सामाजिक, आर्थिक और भावनात्मक कारण छिपे हैं।
इस क्रेज के मुख्य कारण:
- डॉक्टर के पेशे का सम्मान: भारतीय समाज में डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया जाता है। इस पेशे से जुड़ा सम्मान, सामाजिक प्रतिष्ठा और आर्थिक स्थिरता इसे सबसे आकर्षक करियर विकल्पों में से एक बनाती है।
- सीमित सीटें, असीमित उम्मीदवार: देश में मेडिकल कॉलेजों, खासकर सरकारी कॉलेजों में सीटों की संख्या बहुत सीमित है। इसके विपरीत, हर साल परीक्षा देने वाले उम्मीदवारों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2024 में 24 लाख से अधिक छात्रों ने इस परीक्षा के लिए पंजीकरण कराया, जो मांग और आपूर्ति के बीच एक बहुत बड़े अंतर को दर्शाता है।
- पारिवारिक और सामाजिक दबाव: अक्सर माता-पिता अपने बच्चों पर डॉक्टर बनने के लिए दबाव डालते हैं। इसे वे अपने अधूरे सपनों को पूरा करने या समाज में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के एक माध्यम के रूप में देखते हैं। “शर्मा जी के बच्चे” से तुलना एक आम बात है, जो छात्रों पर अतिरिक्त मानसिक बोझ डालती है।
- कोचिंग इंडस्ट्री का मायाजाल: देश के कोने-कोने में फैले कोचिंग संस्थान इस क्रेज को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। आकर्षक विज्ञापनों, टॉपर्स की तस्वीरों और सफलता की गारंटी के दावों के साथ, वे एक ऐसा माहौल बनाते हैं जहाँ छात्रों और अभिभावकों को लगता है कि कोचिंग के बिना सफलता संभव ही नहीं है। यह एक अरबों रुपये का उद्योग बन चुका है।
- बेहतर भविष्य की आकांक्षा: छोटे शहरों और ग्रामीण पृष्ठभूमि के कई छात्रों के लिए, नीट सिर्फ एक परीक्षा नहीं, बल्कि गरीबी और अभाव से निकलकर एक बेहतर जीवन जीने का टिकट है।
इस क्रेज का समाज और छात्रों पर प्रभाव:
- मानसिक स्वास्थ्य पर संकट: सफलता का अत्यधिक दबाव, असफलता का डर और दिन-रात की कड़ी मेहनत छात्रों को मानसिक रूप से तोड़ देती है। तनाव, एंग्जायटी और डिप्रेशन जैसी समस्याएं आम हो जाती हैं। दुखद रूप से, कई छात्र इस दबाव को सहन नहीं कर पाते और आत्महत्या जैसा गंभीर कदम उठा लेते हैं।
- बचपन की तिलांजलि: नीट की तैयारी में जुटे छात्र अक्सर अपने जीवन के सबसे सुनहरे दौर, यानी अपने बचपन और किशोरावस्था को खो देते हैं। उनका जीवन किताबों, कोचिंग क्लास और मॉक टेस्ट के एक दुष्चक्र में फंसकर रह जाता है।
- शिक्षा का व्यावसायीकरण: इस क्रेज ने शिक्षा को एक वस्तु बना दिया है। सीखने और समझने की प्रक्रिया पर अंकों और रैंक को प्राथमिकता दी जाती है, जिससे शिक्षा का मूल उद्देश्य ही खत्म हो रहा है।
- आर्थिक बोझ: कोचिंग की महंगी फीस, शहरों में रहने का खर्च और अन्य शैक्षिक सामग्रियां परिवारों पर भारी आर्थिक बोझ डालती हैं। कई परिवार इसके लिए कर्ज तक लेते हैं, जिससे असफलता की स्थिति में उनकी मुश्किलें और बढ़ जाती हैं।
संक्षेप में, नीट का क्रेज एक बहुआयामी परिघटना है जिसके जितने फायदे हैं, उतने ही गंभीर नुकसान भी हैं। यह छात्रों को एक प्रतिष्ठित करियर की ओर प्रेरित करता है, लेकिन साथ ही उन्हें एक अंधी दौड़ में धकेल देता है जहाँ सफलता की कीमत बहुत अधिक होती है। इस चुनौती से निपटने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें मेडिकल सीटों में वृद्धि, शिक्षा प्रणाली में सुधार, वैकल्पिक करियर के बारे में जागरूकता बढ़ाना और सबसे महत्वपूर्ण, छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना शामिल है। समाज को यह समझने की जरूरत है कि हर बच्चा डॉक्टर बनने के लिए नहीं बना है और सफलता के कई अन्य रास्ते भी हैं।
Nice write about neet
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